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बुधवार, 22 फ़रवरी 2017

दिल का जज्बात

दिन लिखा काले काले, फिर उजली उजली रात लिखा
दिल का हर एक दर्द सजोया अपने मन की बात लिखा
दुनिया बोली कुछ तो लिखो वार प्यार श्रृंगार यंहा
हमने जब भी लिखा बस दिल का अपने जज्बात लिखा
@copyright dev

गुरुवार, 5 नवंबर 2015

विकलांग दिवस पोल खोल भाग 2

विकलांग दिवस पोल खोल भाग-2

संयुक्त राष्ट्र संघ ने 1981 से 1991 के दशक को विकलांगता जागरूकता दशक के रूप में मनाया उसके बाद 1992 से प्रतिवर्ष 3 दिसंबर को अन्तर्राष्ट्रीय विकलांग दिवस मनाया जाता है |  अगर मैं कहूँ कि इस दिन को  "प्रायोजित विकलांगता उत्सव “ कहा जाए तो निश्चित ही अनेक लोगों को इस पर आपत्ति होगी , मगर यही सच है |  ऐसा सच जो विकलांगों की बैशाखियों के सहारे धीरे-धीरे चलकर अधिकारियों के लिए उत्सव बन जाता है  | विकलांग मेला, विकलांग गोष्ठी ,तथा विकलांगता प्रदर्शन , इस सबमे विकलांग कहाँ है ? किसी मंच पर किसी कोने में  , गोष्ठी में स्तब्ध सा ,किसी योजना के क्रियान्वयन में नहीं ,तो फिर कहाँ है विकलांग ? अरे वहीँ तो था -सामने बैठी भीड़ में , किसी दूकान में काउंटर के पीछे , या फिर विकलांगों की दौड़ में , जिसमे एक विकलांग दुसरे विकलांग से जीतेगा और हम ताली बजायेंगे ,  कुछ सम्मान देंगे , प्रमाण पत्र देंगे , कुछ घोषणाएँ करेंगे जो शायद कभी पूरी भी नहीं होंगी , परिणामत: कुछ भ्रष्ट कर्मचारियों और अधिकारियों को कमाई का एक और रास्ता |   जी हाँ यही सच है विकलांगता दिवस का
अच्छा विकलांग दिवस का प्रमुख लक्ष्य या उद्देश्य क्या था विकलांग व्यक्तियों के लिए बेहतर समझ कायम करना, उनके अधिकारों का संरक्षण, उन्हें सामजिक , राजनैतिक , आर्थिक व सांस्कृतिक बराबरी दिलाना पर हुआ क्या ऐसा बिल्कुल नही फिर विकलांग दिवस का क्या औचित्य  इस दिन हम खुश होने का ढिढोरा क्यों पीटे महिला दिवस पर देश की महिलाये अपने हक की आवाज उठा सकती है मजदूर दिवस पर मजदूर साथी अपनी आवाज बुलंद कर सकते हैं फिर हम विकलांग जन विकलांग दिवस पर अपने हक की आवाज क्यों नही उठा सकते
2014 में भारत सरकार व विभिन्न प्रदेश सरकारो द्वारा करोडो का बजट विकलांग दिवस मनाने के लिए खर्च किया गया उस वर्ग के लिए जो आज भी 300(पेंशन) में महीना गुजारने को मजबूर हैं घर की बाहरी दीवार को रँगने से काम नही चलेगा नींव की ईट मजबूत करनी होगी । दिखावा नही अधिकार चाहिए दया नही समानता चाहिए फिर चुप क्यों रहे
विकलांग दिवस की पोल खोल
विकलांग जन हल्ला बोल हल्ला बोल

शेष अगली कड़ी में .......
देवानंद शर्मा
राष्ट्रीय अध्यक्ष
राष्ट्रीय विकलांग अधिकार एवं कर्तव्य मंच
09990889315
npdrd1@gmail.com

विकलांग दिवस पोल खोल भाग 1

विकलांग दिवस की पोल खोल 1-
मित्रो इस विकलांग दिवस 3 दिसम्बर को हम सबने तय किया हैं की हम अपने हक अधिकार की आवाज उठायेगे विकलांग दिवस के पीछे का काला सच सबके सामने लाएंगे इसकी पोल खोल कर रहेंगे ज्यादा पीछे न जाते हुए हुए शुरू करते हैं 2013 में दिए गए राष्ट्रीय आवार्ड से
Low Vision महिला श्रेणी Leprosy Cured में महिला पुरुष श्रेणी Hearing Impairment में महिला श्रेणी Mental illness महिला पुरुष श्रेणी Autism महिला पुरुष श्रेणी  Multiple Disabilities महिला पुरुष श्रेणी में
Best Employer
(i) Government organization
(ii) Public Sector श्रेणी में सरकार का कहना हैं की कोई आवेदन ही नही मिला इस लिए पुरस्कार नही दिए गए उससे भी ज्यादा हास्यपद बात ये रही की विकलांग जनो के लिए बाधामुक्त वातावरण का विशेष पुरस्कार जो किसी सरकारी विभाग को दिया जाना था वो नही दिया गया ।
अब आते हैं असली मुद्दे पर आपने कभी सुना है की महिला दिवस मजदुर दिवस किसान दिवस जैसे सैकड़ो दिवस को दिए जाने वाले किसी भी श्रेणी का पुरस्कार इसलिए न दिया गया हो की आवेदन नही आया फिर विकलांग दिवस पर ही ऐसा क्यों क्या 2013 में कोई भी विकलांग कर्मचारी इस पुरस्कार के लिए पात्र ही नही था क्या जिन श्रेणियों में सरकार ने आवेदन न आने की बात की हैं उन श्रेणियों में उत्कृष्ट कार्य करने वाले विकलांग जन नही हैं एक नही हजारो हैं पर विकलांग दिवस पर सरकार की नीति सम्मानित करना नही ढिढोरा पीटना होता हैं जिस देश की आबादी का 10 से 14 प्रतिशत विकलांग जन हैं वहां राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कार इस लिए न दिए जाए की आवेदन नही आया तो ये शर्म की बात हैं सरकार ने बाधा रहित वातावरण बनाने के लिए सरकारी महकमे को दिया जाने वाला पुरस्कार भी नही दिया इस आधार पर की आवेदन नही आया अब तो पूरी व्यवस्था पर ही प्रश्नचिन्ह खड़ा हो गया 1995 में Pwd एक्ट बना 18 साल बाद भी ऐसा की कोई विभाग नही मिला जिसे बाधा रहित वातावरण का पुरस्कार दिया जाय तो फिर किस मुहँ से सरकार विकलांग जनों के समानता हक अधिकार की बात करती हैं इसीलिए अब बस चुप नही रहेंगे ये विकलांग दिवस पोल खोल की पहली कड़ी हैं इस माह भर कई कड़ियों में आप विकलांग दिवस की सच्चाई से रूबरू होंगे
अभी तो फ़िल्म बाकी हैं मेरे दोस्त....

विकलांग दिवस की पोल खोल
विकलांग जन हल्ला बोल हल्ला बोल

देव शर्मा
राष्ट्रीय अध्यक्ष
राष्ट्रीय विकलांग अधिकार एवं कर्तव्य मंच
09990889315
npdrd1@gmail.com

सोमवार, 22 जून 2015

How to write a complaint or a petition to the Commissioner for persons with disabilities

Writing a Petition for your grievance
How to write a complaint or a  petition to the Commissioner for Persons with Disabilities under The Persons With Disabilities (Equal Opportunities, Protection of Rights and Full Participation) Act, 1995.

Under the Act, there is a provision of Chief Commissioner- Disabilities at the Central level and State Commissioners at the State level. If your matter/grievance relates to Central Government /Institutions under the Central Government/ PSUs etc. you can directly write a petition under Section 59 of the Persons with Disabilities Act and present the same to the Commissioner either  in person/or through a representative/ or through registered post/ or through an email  at the following address :

Chief Commissioner for Persons with Disabilities
Sarojini House, 6 Bhagwan Dass Road, New Delhi 110001
Phone No : 91-011 - 23386154, 23386054
Fax: 91-011-23386006
email: ccd@nic.in

शनिवार, 7 फ़रवरी 2015

क्रांति का बिगुल जागो विकलांग भाई बहनो

"लफ्जों में टंकार बिठा, लहजे में खुद्दारी रखे,
जीने की खवाईश है तो, मरने की तैयारी रखे
सबके सुख में शामिल हो,दुख में साझेदारी रखे
पाठ विजय का पढ, युद्ध निरंतर जारी रखे"
प्रिय मित्रो कुछ वर्ष पूर्व तक विकलांग जन की भावनाओ से खिलवाड़ करना उनकी तौहीन करना सरेबाजार अपमानित कर देना भिक्षुक समझना ये आम बात थी परन्तु अब समय बदल रहा हैं विकलांगजनो के गले से भी हुंकार निकलने लगी हैं वो भी अपने हक़ अधिकार की बात करने लगे और उसके लिए किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार भी है बहुत अच्छा मित्रो अब हमें जगना ही होगा अपने हक के लिए अपने भाईयो के हक लिए अपने आने वाली पीढ़ी के उज्ज्वल भविष्य के लिए, भाईयो आवाज दो हम एक हैं राष्ट्रीय विकलांग अधिकार एव कर्तव्य मंच (पंजी0) के माध्यम से एक ऐसा मंच तैयार करने का प्रयास किया जा रहा जिसमे हर श्रेणी के विकलांग जन शामिल हो सके मित्रो आज हम 1000 हुए कल 10000 और फिर 1 लाख भी परन्तु अभी का समय बहुत नाजुक हैं पौधा लग चूका हैं  जड़ फोड़ कर नव अंकुर अपनी शाखाओ के साथ पुरे जोशोखरोस से अपने अभिनव सफर पर चलने को तैयार हैं बस अब जरुरत हैं हमको आपको मिलकर इस नवपौध को वट वृक्ष बनाने की, अपना पूरा जोर लगा दीजिये एक बार बस एक बार मिलकर इंकलाब करना हैं फिर देखिये कैसे हमारी समस्या कौन नहीं सुनता मित्रो ये क्रांति का बिगुल हैं अब सोने का समय नही अब समय हैं इस महायज्ञ में अपनी आहुति डालने का और अपने विकलांग भाई बहनो के लिए सर्वस्य अर्पण कर देने
हो के मायूस न यूँ शाम सा ढलते रहिये,
ज़िन्दगी भोर है सूरज सा निकलते रहिये,
एक ही पांव पे ठहरोगे तो थक जाओगे,
धीरे-धीरे ही सही राह पे चलते रहिये..

शनिवार, 3 जनवरी 2015

नेत्रहीन भाई बहनो को समर्पित

ये मौसम,ये वादी ये रंग और नज़ारे
हाँ शून्य से है बिल्कुल ऐ लिए हमारे
ये घटा ये छटा ये सुनहरे सावन से पल
देखते है हम किसी और के सहारे
न देखी हैं हमने वो कागज की कश्ती न देखा है हमने बारिश का पानी
पर हममे भी है वो बचपन की शरारत और  यौवन की रवानी
बड़ी मुश्किल से फिर भी ये पल हैं गुजारे
हाँ शून्य से है बिल्कुल ऐ लिए हमारे.......
पढ़ना भी चाहा था बाते किताबी
काँटों सा जीवन और अहसास गुलाबी
जमाने ने भी ठुकराया है हर पल हमको
बन कर रह गए बस हम बिचारे
हाँ शून्य से है बिल्कुल ऐ लिए हमारे
चाहत है की मेरी आँखे बनो तुम
मेरे लिए भी कुछ सपने गुनो तुम
हमको भी अपने दिल में जगह दो
हम भी तुम्हारे जैसे है प्यारे
हाँ शून्य से है बिल्कुल ऐ लिए हमारे......
देव शर्मा

शुक्रवार, 2 जनवरी 2015

देश में शिक्षा का स्तर: समस्या और समाधान

शिक्षा किसी भी देश के लिए सबसे ज्यादा आवश्यक तत्त्वों में से एक है. एक शिक्षित समाज ही देश को उन्नत और समृद्ध बनाने में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है. शिक्षा विहीन समाज साक्षात् पशु के समान बताया गया है. संस्कृत के महान कवि श्री भर्तृहरी जी ने स्पष्ट रूप से कहा भी है – “शिक्षा विहीन साक्षात् पशु: पुच्छ विषाणहीन: .” हमारे वैदिक मन्त्रों में भी मंत्रित है – असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय, मृत्योर्मा अमृतं गमय:. इसका अर्थ हुआ कि विद्या अथवा शिक्षा सत्य का, ज्ञान का, अमरता का कारण है. जब शिक्षा हमें अमरता प्रदान कराने में सहायक है तो एक शिक्षित समाज देश को अमर करने में अपनी भूमिका क्यों नही निभा सकता? अब जब शिक्षित समाज की बात उठी है तो सबसे पहले शिक्षित समाज में नाम आता है देश को शिक्षित करने वाले हमारे आदरणीय शिक्षकगण का. अब जब शिक्षकों की बात आई है तो हमें याद आती है आचार्य चाणक्य की जिन्होंने अपना शिक्षण धर्म बखूबी निभाया देश के प्रति भी और समाज के प्रति भी. ऐसे और भी इस देश में बहुत से अनुकरणीय उदाहरण हैं जो शिक्षकों को सम्मानीय स्थान दिलाने में विशिष्ट भूमिका निभाते हैं. परन्तु आज इस देश को जिसे दुनिया जगतगुरु की उपाधि से विभूषित कर चुकी है शिक्षा के स्तर को स्तरीय स्थान दिलाने के लिए भी दो-चार होना पड रहा है. यह बड़े ही दुःख का विषय है कि आज हमारे इस विशाल देश में शिक्षा के स्तर में लगातार गिरावट का सामना करना पड रहा है शिक्षा के सबसे आवश्यक स्तभ विद्यार्थी, शिक्षक और पाठ्यक्रम सभी में लगातार गिरावट आ रही है. इसके लिए जिम्मेदार कौन है? सरकार?, समाज?, विद्यार्थी? या फिर शिक्षक? मैं कहता हूँ ये सभी इसके लिए जिम्मेदार हैं. कैसे? सबसे पहले हम बात करते हैं सरकार की. सरकार देश की स्वतन्त्रता के 67 वर्षों बाद भी कोई एक उत्तम शिक्षा नीति का निर्माण नहीं कर पाई हैं और तो और इस देश में आज़ादी के बाद पहली सरकार में जो शिक्षा मंत्रालय था बाद में वह भी स्वतंत्र न रहकर मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अधीन एक शिक्षा विभाग के रूप में रह गया है. जिसके पास पहले से ही बहुत से अन्य महत्त्वपूर्ण कार्य हैं. दूसरे शिक्षा की दूसरी सबसे महत्त्वपूर्ण संस्था राष्ट्रीय शैक्षणिक विकास एवं अनुसन्धान परिषद (एन. सी. ई. आर. टी.) भी कहीं न कहीं अपनी भूमिका का निर्वहन करने से चूक रही है. तीसरे देश का सबसे बड़ा शिक्षा बोर्ड केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सी. बी. एस. ई.) भी एक कारगर कदम उठाने में असमर्थ रहा है. विगत 15 वर्षों में देश के शैक्षणिक कार्यकर्मों में कई छोटे बड़े बदलाव किये गये हैं परन्तु क्या ये बदलाव काफी हैं? क्या इन सभी बदलावों का सकारात्मक असर पड़ा है? हाँ आप यह तो कह सकते है कि अब बोर्ड की परीक्षाओं में अच्छे अंक विद्यार्थियों को प्राप्त हों रहें हैं परन्तु इन प्राप्तांको के पीछे का अंकगणित कुछ अलग किस्म का है ये अंक पाठ्यक्रम के साथ समझौता करके प्रदान किये जा रहें हैं. आज का पाठ्यक्रम 20 वर्ष पहले के पाठ्यक्रम और परीक्षा प्रणाली के सामने बहुत ही आसान है.

दूसरे अगर हम बात करें समाज की तो दो दशक पहले के समाज में अभिभावक शिक्षकों को भगवान् से भी ज्यादा सम्मान देते और दिलाते थे अपने बच्चे की हर अच्छी बुरी बात से अध्यापक को परिचित कराते थे. बच्चे की गलती पर स्वयं उसे न डांटकर उसके अध्यापकों के सामने उसकी गलती का खुलासा करते थे और अध्यापक उन्हीं के समक्ष बच्चे को समझाते थे और बच्चा भी अपने अध्यापक के हर एक शब्द को अक्षरत: पालन कर उनकी महत्ता को द्विगुणित करता था. परन्तु आज का समय बदल चुका है, परिवार बिखर चुके हैं माता-पिता अपनी एक या दो संतानों को बड़े ही नाजों से पालते हैं ऐसे में उनके बच्चे को किसी भी प्रकार की असुविधा उन्हें गवारा नहीं. जिस देश में भगवान् श्री कृष्ण और सुदामा एक ही आश्रम में शिक्षित हुए हों उस देश में आज विद्यालयों का विभाजन हो चुका है. विद्यार्थियों की योग्यता इन सभी बातों से बुरी तरह से प्रभावित हो रही है. इस कुप्रभाव को रोकने का कोई प्रबन्ध नहीं किया जा रहा. ये मानना बिलकुल न्यायसंगत है कि आज का बच्चा बहुत ही अधिक एडवांस हो चुका है बहुत – सी वे बातें जो दो दशक पूर्व के विद्यार्थियों को नही पता थी आज उन्हें पता हैं परन्तु हमने यह नहीं भुलाना चाहिए कि दो दशक पहले की स्थिति और आज की स्थिति में बहुत अंतर आ चुका है. जो नए नए आविष्कार हुए है निसंदेह आज का विद्यार्थी उनका उपयोग करना जानता हैं परन्तु इसका अर्थ यह नहीं कि कुछ काल खण्ड पहले के विद्यार्थी यह सब नहीं जानते थे हमने यह कभी भी नहीं भुलाना चाहिए कि किसी भी आविष्कार या खोज में हमारे अतीत का बहुत बड़ा योगदान होता है आज जिन नई-नई वस्तुओं जैसे मोबाईल फोन, कम्प्यूटर, टेबलेटस आदि का निर्माण हुआ हैं उसे करने वाले दो दशक पूर्व के लोग ही थे ! ये सब वस्तुएं उन्हीं लोगो के द्वारा निर्मित और उपभुक्त हैं जिन्हें आज का विद्यार्थी निपट अनाड़ी समझने की भूल करता है. बच्चे की इस अवधारणा के पीछे क्या कारण हैं हमें इनके उत्तर तलाशने हैं. आज का बच्चा यधि अपने माता पिता और अध्यापक की अवहेलना करता है तो इसका कारण भी हमें ही तलाशना होगा. यदि आज का बच्चा इतना अधिक उग्र और उत्तेजित है तो इसका कारण हम और हमारा समाज ही है. बच्चे की यह कोमलता (सेंसिविटी) आज उसके लिए खतरनाक साबित हो रही है. इस पर अंकुश लगाया जाना बेहद जरूरी है. माता – पिता बच्चे को लाड प्यार के बहाने गलत राह पर न जाने दें थोडा कठोर होना जरूरी भी है और इसकी आवश्यकता भी है.

तीसरे हम कह सकते हैं कि आज का विद्यार्थी अपने पूर्ववर्ती विद्यार्थियों से बहुत आगे है पर क्या हम यह नही भूल जाते कि भविष्य का निर्माण अतीत के गर्भ में ही होता है? क्या हमें आज की इस पीढ़ी को अपने वे पुराने संस्कार याद नहीं कराने चाहियें जिनके कारण यह आज इतना इतराता फिरता है. कौन करेगा यह कार्य? इस प्रश्न का उत्तर तो पाठकों को स्वयं ही खोजना होगा