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शनिवार, 3 जनवरी 2015

नेत्रहीन भाई बहनो को समर्पित

ये मौसम,ये वादी ये रंग और नज़ारे
हाँ शून्य से है बिल्कुल ऐ लिए हमारे
ये घटा ये छटा ये सुनहरे सावन से पल
देखते है हम किसी और के सहारे
न देखी हैं हमने वो कागज की कश्ती न देखा है हमने बारिश का पानी
पर हममे भी है वो बचपन की शरारत और  यौवन की रवानी
बड़ी मुश्किल से फिर भी ये पल हैं गुजारे
हाँ शून्य से है बिल्कुल ऐ लिए हमारे.......
पढ़ना भी चाहा था बाते किताबी
काँटों सा जीवन और अहसास गुलाबी
जमाने ने भी ठुकराया है हर पल हमको
बन कर रह गए बस हम बिचारे
हाँ शून्य से है बिल्कुल ऐ लिए हमारे
चाहत है की मेरी आँखे बनो तुम
मेरे लिए भी कुछ सपने गुनो तुम
हमको भी अपने दिल में जगह दो
हम भी तुम्हारे जैसे है प्यारे
हाँ शून्य से है बिल्कुल ऐ लिए हमारे......
देव शर्मा

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